Monday, January 16, 2012

फिर एक आज..?


देखो  देखो  सूरज  आई.. आ  गया  है  फिर  एक  आज !
कल  का  सूरज  ढल  चूका  है  आया  है  फिर  एक  आज !
जिसकी  थी  जो  कामना  मन  को  पिगल  रहा  हे  फिर  एक  आज !
गुज़र  गई  है  ज़िन्दगी  और  एक..,  आ  गया  है  फिर  एक  आज!
लम्हा  लम्हा  चल  रही  है..  जीवन  की  फिर  एक  आज !
ढलने  लगी   है फिर एक  सांसे..  गुज़र  रही  है  फिर  एक  आज !
पिघल  रही  है  फिर  एक  रोशनी..  बिधाई में  है  फिर  एक  आज !
कल  की   सूरज  की  एक  आश  में... भूल  न  जाओ  फिर  एक  आज!
शाम ढली  तो  रात  आई  ज़िन्दगी  में  कुछ  कमी  लाइ,
संग  रोशनी  की  चली  गई.. जो  छुट  गई है  फिर  एक  आज !
हम  जो  है  आज  ही  करदे.., कही  गुज़र  न  जाये  फिर  एक  आज.!
ज़िन्दगी  तो  एक आज  का  सफ़र  है  सफ़र  जो  भी  है  आज !
जागो  एक  बार  देखो  तुम..  बिखर  रही  है  फिर  एक  आज..!
डरो नही  तो  करो  अभी...  जो  हो  वो  सब  है  आज!
कल  की  आश  में  खो  न  देना..  ज़िन्दगी  सी  प्यारी  फिर एक  आज..!!

Friday, September 23, 2011

प्रेम पर विद्वानों के विचार...!


प्यार एक विलक्षण अनुभूति है। सारे संसार में इसकी खूबसूरती और मधुरता की मिसालें दी जाती हैं। इस सुकोमल भाव पर सदियों से बहुत कुछ लिखा, पढ़ा और सुना जाता रहा है। बावजूद इसके इसे समझने में भूल होती रही है। मनोवैज्ञानिकों ने इस मीठे अहसास की भी गंभीर विवेचना कर डाली। फिर भी मानव मन ने इस शब्द की आड़ में छला जाना जारी रखा है। 


अलग-अलग विद्वानों, लेखकों और विचारकों ने प्यार को अपने-अपने नजरिए से देखा और बयां किया है। पेश है आपकी नजर कुछ ऐसे ह‍ी गहन-गंभीर विचार : 


महान विचारक लेमेन्नाइस के अनुसार - 'जो सचमुच प्रेम करता है उस मनुष्य का ह्रदय धरती पर साक्षात स्वर्ग है। ईश्वर उस मनुष्य में बसता है क्योंकि ईश्वर प्रेम है।'


दार्शनिक लूथर के विचार हैं कि 'प्रेम ईश्वर की प्रतिमा है और निष्प्राण प्रतिमा नहीं, बल्कि दैवीय प्रकृति का जीवंत सार, जिससे कल्याण के गुण छलकते रहते हैं।'


मनोवैज्ञानिक वेंकर्ट का मत है - 'प्यार में व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति की कामना करता है, जो एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में उसकी विशेषता को कबूल करे, स्वीकारे और समझे। उसकी यह इच्छा ही अक्सर पहले प्यार का कारण बनती है। जब ऐसा शख्स मिलता है तब उसका मन ऐसी भावनात्मक संपदा से समृद्ध हो जाता है जिसका उसे पहले कभी अहसास भी नहीं हुआ था।'


मनोवैज्ञानिक युंग कहते हैं - प्रेम करने या किसी के प्रेम पात्र बनने से यदि किसी को अपनी कोई कमी से छुटकारा मिलता है तो संभवत: यह अच्छी बात होगी। लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि ऐसा होगा ही। या इस तरह से उसे मुक्ति मिल ही जाएगी।


मनोवैज्ञानिक हॉर्नी स्वस्थ प्रेम को संयुक्त रूप से जिम्मेदारियां वहन करने और साथ-साथ कार्य करने का अवसर बताते हैं। उनके अनुसार प्रेम में निष्कपटता और दिल की गहराई बहुत जरूरी है।


मैस्लो ने स्वस्थ प्रेम के जिन लक्षणों की चर्चा की है वे गंभीर और प्रभावी है। वे कहते हैं सच्चा प्यार करने वालों में ईमानदारी से पेश आने की प्रवृत्ति होती है। वे अपने को खुलकर प्रकट कर सकते हैं। वे बचाव, बहाना, छुपाना या ध्यानाकर्षण जैसे शब्दों से दूर रहते हैं। मैस्लो ने कहा है स्वस्थ प्रेम करने वाले एक-दूसरे की निजता स्वीकार करते हैं। आर्थिक या शैक्षणिक कमियों, शारीरिक या बाह्य कमियों की उन्हें चिन्ता नहीं होती जितनी व्यावहारिक गुणों की।


सुप्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम ने लिखा है - जिसके साथ होकर भी तुम अकेले रह सको, वही साथ करने योग्य है। जिसके साथ होकर भी तुम्हारा अकेलापन दूषित ना हो। तुम्हारी तन्हाई, तुम्हारा एकान्त शुद्ध रहे। जो अकारण तुम्हारी तन्हाई में प्रवेश ना करे। जो तुम्हारी सीमाओं का आदर करे। जो तुम्हारे एकान्त पर आक्रामक ना हो। तुम बुलाओ तो पास आए। इतना ही पास आए जितना तुम बुलाओ। और जब तुम अपने भीतर उतर जाओ तो तुम्हें अकेला छोड़ दे।


खलील ‍जिब्रान ने प्रेम पर इतना खूबसूरत लिखा है कि जितना पढ़ो उतना कम ही लगता है। खलील हर बार एक नई व्याख्या और नए दर्शन के साथ प्रेम पर अभिव्यक्त होते हैं जैसे - 'प्रेम केवल खुद को ही देता है और खुद से ही पाता है। प्रेम किसी पर ‍अधिकार नहीं जमाता, न ही किसी के अधिकार को स्वीकार करता है। प्रेम के लिए तो प्रेम का होना ही बहुत है।


कभी ये मत सोचो कि ‍तुम प्रेम को रास्ता दिखा रहे हो या दिखा सकते हो, क्योंकि अगर तुम सच्चे हो तो प्रेम खुद तुम्हें रास्ता दिखाएगा। प्रेम के अलावा प्रेम की ओर कोई इच्छा नहीं होती पर अगर तुम प्रेम करो और तुमसे इच्छा किए बिना ना रहा जाए तो यही इच्छा करो कि तुम पिघल जाओ प्रेम के रस में और प्रेम के इस पवित्र झरने में बहने लगो। 


प्रेम के रस में डुबो तो ऐसे कि जब सुबह तुम जागो तो प्रेम का एक और दिन पा जाने का अहसान मानो। और फिर रात में जब तुम सोने जाओ तो तुम्हारे दिल में अपने प्रियतम के लिए प्रार्थना हो और होठों पर उसकी खुशी के लिए गीत। 


प्रेम सबसे करो, भरोसा कुछ पर करो और नफरत किसी से न करो -ईसा मसीह


पुरुषों का प्रेम आंखों से और महिलाओं का प्रेम कानों से शुरू होता है -अज्ञात


किसी दुश्मन को पूरी तरह बर्बाद करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि उससे प्रेम करना शुरू कर दो -अब्राहम लिंकन


प्यार से हमेशा कोसों दूर रहने से अच्छा है, प्यार करके तबाह हो जाना -सेंट ऑगस्टीन


प्रेम सीधी-साधी गाय नहीं है, खूंखार शेर है, जो अपने शिकार पर किसी की आंख नहीं पड़ने देता - मुंशी प्रेमचंद


प्रेम से भरा हृदय अपने प्रेम पात्र की भूल पर दया करता है और खुद घायल हो जाने पर भी उससे प्यार करता है -महात्मा गांधी


प्यार की छुअन से हर कोई कवि बन जाता है -प्लेटो


परियों की कहानी में सिंड्रेला अपने प्रियतम से कितनी खूबसूरत बात कहती है, देखिए -क्या तुम मुझसे इसलिए प्यार करते हो कि मैं खूबसूरत हूं या फिर मैं इसलिए खूबसूरत हूं क्योंकि तुम मुझे प्यार करते हो? 

Thursday, December 9, 2010

कसमकसमें...???

गुज़र गई हे जो ज़िन्दगी, उशे फिर पानेको दरबदर में फिरता हूँ 
आ जाये वो सुबह फिर से, हसरते इसकदर लिए मैं फिरता हूँ ,
खता जो हो गई हे हमसे, दफ़न है  वो  वक्त के उन पन्नो में 
उन्ही पन्नो की सोच लिए ख्यालों में अब दरबदर मैं  फिरता हूँ ,
निज़दों की काबिल तो ना हूँ मैं, उम्मीदें सजा लिए भटका भटका सा मैं फिरता हूँ 
बुझेना  बोझ मन में लिए ये सांसे, मौत से भी अब  मैं भगा भगा सा फिरता हूँ, 
पार कर गए है दरिया सभी, मज़ेधार में मैं बहेका-बहेका सा फिरता हूँ 
समय वह चला हे गति आपने लिए, और ठहराव मनकी कसमकसमें रुका रुका  सा मैं  फिरता हूँ ..!!



नाता फिर क्यूँ .. उन गलियौं से???



हो गया हूँ रुशवा जिन गलियौं से,
तोड़ दिया है रिश्ता उन गलियौं से !
कदम उन्ही रास्तोपर चलने को है  फिर क्यूँ ?
छोड़ दिया है चलना जब उन गलियौं से !!


रास्ता-ऐ-मनजिं और भी है फिर क्यूँ ?
चल पड़ती है कदम भटकते उन गलियौं से !
सुकू-ऐ-दिल की और भी है फिर क्यूँ ?
मिलती है राहत उन्ही गलियौं से !!


नफरते दिलमें भरा - भरा है फिर क्यूँ ?
होठों की  हंसी मिलती है उन गलियौं से !
चोट-ऐ-जिगर गहेरी है फिर क्यूँ ?
राहत-ऐ-महरम की आश है उन गलियौं से!!


अब तो ज़िन्दगी एक प्याश बन गई है 
रुसवा-ऐ-गली कुछ खाश बन गई है ,
रातें अब तो कटती है उस इन्तुज़र में 
सुबह  हो  और फिर चल पडून उन गलितोउन से!!!

Thursday, January 7, 2010

जबसे तुम दूर हुए हो

जबसे तुम दूर हुए  हो दिल के और करीब हुए हो
महेसूस में हमेशा पास हो तुम
आँखों में बसी एक तस्वीर हुए हो..!

वीरान मन की दैलीज़ में आके
माथे की एक लकीर हुए हो
कितना अच्छा लगता हे जीवन
जबसे तुम मेरे हुए हो..!

रोता हूँ अब तुम्हे याद करके
फ़रियाद करता हूँ..फिर एक दीदार की.!
जबसे तुम दूर हुए हो..!!

Wednesday, December 16, 2009

आँसूssssssss

जब  कभी  बहती  हे  ये  आँसू
जाने  अनजाने  कुछ  कहती  हे  ये  आँसू
पीड़ा  दिल  की  कोने  में  हो  चाहे  दबी
आँखों  में  नज़र लाती  हे  ये  आँसू
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असह  दर्द  की  आभाष  हो  जाये  जब  कभी
 धडकनों  में  बेचैनी  भर  जाये  जब  कभी..!
 आँखे  नम  हो जाती  हे  फिर..,
पलकों  तले उतर  आती  हे  ये  आँसू..!!
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उमंगें  ख़ुशी  बनके   दौडती   हो  जब  कभी
 तरंगे  मानको  छु  जाती  हो  जब  कभी..!
 कापने  लगते  हे  फिर  ये  होंठ...
नज़रों  में  भर आती   हे  ये  आँसू..!!
____*******_____*******_______
भय  मन  को  छू  जाती  हे  जब  कभी,
 दर्द  हद  से गुज़र  जाती  हे  जब  कभी..,
 तुफानो  में  भी  छलक  जाती  हे  ye आँसू..!!
हो  जाती  हे  जुदा  पलकों  से  गीर  के  जब  ये  आँसू
बिछोड   मन  की  ब्यथा  को कह  जाती  हे  ये  आँसू..!
दिल  की  गहिरयों  से  पुकारे  जब  कोही
आँखों  में  वफ़ा  लिये  फिर  नज़र  आती  हे  ये  आँसू....!!!

Wednesday, December 9, 2009

एक..................अहेसास.........!!!

ज़िन्दगी  को  कही  कुछ  तो  बसर  मिल  जाये,
सपने  सजा  लूं  पर  कुछ  तो  आसार  मिल जाये..!.
जी  लेता  फिर  मैं  उन  लम्हों  में..
नज़रों  से  अगर उसकी  नज़र  मिल  जाए..!!

चलते चलते  कदम  रुक  जाती  हे  यू   ही,
मंजिले  फासले  बन  जाती  हे  यू   ही,
नज़र  दूरियौं  को  और  करीब  कर  देती  हे...
ठहराऊ   धडकनों  की  बढ़  जाती  हे  यू   ही..!!

मिल  जाये  वो  जिनके  लिये  जीवन  थका  थका  सा  हे..
धड़कने  खामोस  हे, साँसे  रूका रूका  सा  हे!
सफ़र  वो  फिर  डगर  बन  जाये,
ज़िन्दगी  में  वो  हमसफ़र  बन  जाये!

फिर  मंजिल  कहा,  लम्हे  कैसी..?

साँसों  को  नसों  में  लहराना  छोड़  दूं...
नजरो  में  खाबों  को  बसाना  छोड़  दूं..
छोड़  दूं  हर  वो  चाहते, हर  वो  आरजू
और  जीलूँ  फिर  उन  खयलौं में,
वोह  मिल  रही  हे, ज़िन्दगी  मिल  रहा  हे … हाँ  वोह आ रही हे,
ज़िन्दगी और करीब हो रही हे,
आहा!ये कैसा अहेसास हे... कैसा  सूकून  हे…??